काश ऐसा भी होता…
वक्त का रुख यूं मोड लेता, तो शायद आज मैं कुछ और ही होता..!
वह दिन आज भी मुझे याद है, जो भूलाय ही नहीं भूलता।
वह दिन जब मेरी शादी थी, कहीं अरमानों की बलि चढ़ी थी। मैं क्या चाहती थी, यह किसी ने पूछा नहीं,मां-बाप की आंखों में जो खुशी देखी, शायद यही वजह होगी कि मैंने कुछ बताया भी नहीं।
दुख तो उन्हें भी बहुत था, मेरे दूसरे घर जाने का
पर तुम खुश रहोगी, यह कह कर उन्होंने अपने आपको मना लिया था।
आज भी वह दिन याद आता है…काश मैं उन्हें बोल पाती के ,’मां मुझे अभी शादी नहीं करनी’ आपके और पापा का नाम रोशन करना है
पर क्या वह मेरी सुनते??
शायद नहीं..
क्योंकि यह समाज वालो ने कुछ रीत ही ऐसी बनाई है,
के बेटी होती ही पराई है।
काश ऐसा भी होता कि…
वह मान भी जाते.. पर क्या वह अपनी बेटी पर भरोसा कर पाते???आज भी वह दिन जब याद करती हूं,तो एक आंसू निकल ही जाता है..यह सोचकर कि काश ऐसा भी होता,
वक्त का रुख यू मोड लेता।
तो आज शायद मैं अपने पैरों पर खड़ी हुई होती और अपने मां-बाप की खुशी बनी हुई होती।
यह समाज भी गर्व करता के देखो बेटी ने कितना नाम कमाया है।
जो ना सोचा था, वह कर दिखाया है।खुद के पैरों पर खड़े होकर, यह मौका कमाया है।
के आज उससे पूछा गया है, कि तुझे लड़का पसंद आया तो है़…!!!!
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